दुनिया के चौथे सबसे बड़े रेल नेटवर्क की इस महान उपलब्धि को सलाम कीजिए कि उसने 45 दिन में ढाई लाख लोगों को घर पहुंचा दिया.
2011 की जनगणना के अनुसार, प्रवासी मज़दूरों की संख्या 14 करोड़ के आसपास है.
विश्व बैंक ने 22 अप्रैल एक रिपोर्ट में कहा, ‘भारत में लॉकडाउन से लगभग चार करोड़ आंतरिक प्रवासियों की आजीविका पर असर पड़ा है.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इकोनॉमी (सीएमआइई) के आंकड़े हैं, ‘तालाबंदी घोषित होने के बाद करीब 12 करोड़ लोगों का रोजगार छूट गया है.
2018-19 का आर्थिक सर्वेक्षण कहता है कि असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की संख्या कुल वर्क-फोर्स का 93% है. नीति आयोग ने इसे 85% और राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने इसे 82% बताया है.
आजीविका ब्यूरो के अनुसार देश में 12 करोड़ से भी ज़्यादा ऐसे मज़दूर हैं जो गांवों से बड़े शहरों की ओर आते हैं. इनमें से लगभग चार करोड़ सिर्फ निर्माण क्षेत्र से जुड़े हैं.
इन सबके आधार पर माना जा सकता है कि 10 से 15 करोड़ मजदूर/कामगार शहरों या कस्बों में फंसे हो सकते हैं.
मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि कितने लोग अभी सड़कों पर पैदल चल रहे हैं, उनके लिए क्या इंतजाम हैं, न यही बताया कि कितने लोग पैदल चलकर मरे हैं.
लेकिन अब इन मजदूरों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने इंतजाम कर दिया हैं. जबकि ये इंतजाम नहीं कह सकते बल्कि लूट सामने आया हैं योगी सरकार ने इन मजदूरों को घर लाने के लिए किराए की सूचि तैयार की हैं.
एयरपोर्ट से घर जाने के लिए कैब का किराया 12 हजार और बस के लिए 1500 रूपये रखा हैं