मैं बोलूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का,मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है। क्या करूँ क्या ना करूँ कुछ समझ नहीं आता। कई दिनों से कुछ लिखना चाह रहा था लेकिन जब सवालिया निशान समाज की एक बड़ी टुकड़ी पर लग रहे हों और उसमें हज़ारों अपने हों तो क़लम उठने के लिए हाँथ कमज़ोर साबित होने लगते हैं लेकिन अभी बैठा ही था की मुंशी प्रेम चंद्र की एक लाइन याद आ गयी – “क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात ना कहोगे” तो रेडीयो पर वाली नहीं बस मन वाली मन की बात आप से साझा करता हूँ।
देश दुनिया में कोरोना अपनी जड़े गड़ाए बैठा है, अफ़रा तफ़री का माहौल है सभी के जान के लाले हैं लेकिन इस कठिन परिस्थिति में भी नफ़रत की जन्नी कट्टरता की बन्दर बाँट चालू है।
सवाल तो कई हैं लेकिन उन्मे से अहम सवाल-ऐसा क्या कारण है की भारतीय मुस्लिम समुदाय सदैव हँसिये पर रहता है? हर परस्थिति में उसे ही क्यों निशाना बनाया जाता है? देश की सभी समस्स्याओं का उसे ही ज़िम्मेदार क्यों थहराया जाता है?
अपनी कट्टरता के कारण क्यों उसके बलिदानों को दरकिनार किया जाता है?
ये वही मुस्लिम समुदाय है जो मई की चिलचिलाती धूप में रोज़े की अवस्था में होने के बावजूद अपनी भूँख-प्यास भुला कर घर लौट रहे प्रवासियों के लिए हाईवे से ले कर गली कूँचो तक खाना-पानी बाँटता नज़र आता है,ये वही मुस्लिम समुदाय है जो आतंक का अड्डा कहे जाने वाले अपने मसजिद,मदरसे कुआरंटाइन के लिए सौंप देता है,ये वही समुदाय है जो लाकडाउन में हिंदू भाईयों का विधी विधान के साथ अंतिम संस्कार करता नज़र आता है,ये वही समुदाय है जोप्लाज़्मा/ रक्त दान करता नज़र आता है।
लेकिन अख़िर इससे इतनी नफ़रत,तंज,ताने,मार,काट,जलन क्यों? क्या यही उन अराजक तत्त्वों का धर्म है? क्या यही उनकी विचारधारा है?
चलो माना राजनैतिक मदभेद हो सकता है,लाखों में कुछ ग़लत हो सकते हैं लेकिन इसका क़तई ये मतलब नहीं की एक तराज़ू में सभी को एक साथ तौल दिया जाए,जो जहाँ ग़लत है उसका विरोध करें लेकिन उसे उसके धर्म से ना जोड़ा जाए भले ही वो किसी भी धर्म से हो।
हम इसे साधारण तरीक़े से समझें तो हम किसी भी धर्म से हों हमारा बिगाड़,तनाव कभी ज़मीन,सम्पत्ति को ले कर कभी पारिवारिक मसलों को ले कर कभी आन,बान को ले कर क्या सिर्फ़ ग़ैर धार्मिक लोगों से ही होता है? संतोष भाई का मनोज भाई से भी हो सकता है सरताज भाई का सरफ़राज भाई से भी।
मतलब सफ़ है बुराइयाँ,कमियाँ धर्म में नहीं लोगों में होती है इसी द्रष्टि कोण से हमें देखना होगा तभी हम एक सुख शान्ति वाले भारत की रचना कर पाएँगे। संकट की इस परिस्थिति मे देश को आप की ज़रूरत है। राजनेताओं के काम आने से बेहतर देश के काम आएँ।घ्रणा को एकता की ज्वाला मे भस्म कर एक बने नेक बने।सब मिल कर देश को शांति व उन्नती के मार्ग पर चलने,चलाने मे अपना योगदान दें।