साहब उसे पीरियड्स भी आते होंगे, जिसे आप हर चुनावी मंच से मां बहन कहते हैं। आपके द्वारा लिए गए फैसले लॉक डाउन में मजदूर महिलाएं हफ्तों से पैदल चल रही हैँ उनमे से कइयों के पीरियड्स भी चल रहे होंगे। कई के अचानक शुरू हुए होंगे। चलते काफिले में अचानक शुरू हुए पीरियड्स के लिए सबको कैसे रुकने को बोल सकती थी वो, तो पीरियड्स में चलती रही।
40 मर्दों के बीच ट्रक में बैठी महिला का पीरियड शुरू हो जाये तो क्या करेंगी? कैसे मैनेज़ किया होगा? रोटी और बच्चों के लिए दूध खरीदने के पैसे नहीं तो पैड्स तो नहीं ही होंगे। कोई कपड़ा होगा भी तो लगातार हफ़्तों के पैदल चलने में कहां धोया, कब कैसे सुखाया होगा? कभी सोचा है आपकी सरकार ने? लगातार पैदल चलने से उन महिलाओं की जाँघ तक छिल गयी होंगी।
कुछ मजदूर महिलायें गर्भवती भी होगी। हमारे घर की गर्भवती को जरा सा दर्द हो तो अस्पताल ले भागते है लेकिन इनको जब दर्द हुआ होगा तो किससे कहा होगा? अगर कह भी दिया तो पति कितना बेसहारा और मजबूर फील किया होगा कि अपनी पत्नी के लिए वो कुछ नहीं कर सकता।
एक मजदूर महिला को चलते हुए लेबर पेन हुआ, उसने रास्ते में बच्चे को जन्म दिया, बच्चे की नाल काटी और 2 घंटे बाद फिर चलने लगी। आपके घर की महिलाओं की हफ़्तों मालिश होती है। सोचो उसपे क्या गुजरी होंगी। कई महिलाओं में इंफेक्शन फैलेगा, कई कोरोना की बजाय इंतेज़ाम की कमी और इंफेक्शन से मर जाएंगी। इसका हिसाब कौन देगा?
सरकारों को इसका खयाल नहीं आया? अरे राजनीति करने वालो, टांगों से खून टपक रहा है और तुम्हें राजनीती करनी है? ट्रंप की रैली करवानी हैं? जिस व्यक्ति का परिवार ना हो उसे राजा नहीं बनाना चाहिए, वो उतना संवेदनशील नहीं होता। वो दर्द पढ़-सुन सकता है, महसूस नहीं कर सकता। तुम्हारे तो परिवार है, तुमने क्यो महसूस नहीं किया? तुम्हारा पता नहीं लेकिन इतिहास याद रखेगा। जब सीताऐं लव-कुश हाथ में लिए सड़क पर दौड़ी जा रही थी तब भाजपाई राममंदिर की खबरों पे जश्न मना रहे थे। ओर मुसलमानों में जमाती ढूंढ रहे थे।































