देश में दो तरह के विचारधारा के लोग हैं एक तो वे लोग है जो संविधान को मानते हैं जाति धर्म को ना देखते हुए हर तरह के अपराध के खिलाफ खड़े होते है अपराधियों पर करवाई की मांग करते हैं.
एक और विचारधारा के लोग हैं जो धर्म देखकर इन्साफ की मांग करते हैं उदाहरण समझिये. अगर कोई मुस्लिम की मॉब लिंचिंग हुआ तो कोई दिक्कत नहीं. बल्कि मोब लिंच करने वाले अपराधी को जाकर फूल का माला पहनाते हैं. लेकिन अगर कोई हिन्दू संत साधु या व्यक्ति की हत्या हुआ तब ये आरोप मुसलमान पर लगायेंगे और करवाई की मांग करेंगे.
अगर इस हत्या में आरोपी भी हिन्दू समुदाय का निकला तो ये चुप हो जायेंगे फिर कुछ नहीं बोलेंगे. हलाकि इसमें भी इन्होने कई प्रकार के हिन्दू बना रखे हैं अगरमारने वाला स्वर्ण समुदाय से है तो मरने वाला कोई दलित पिछड़ा है तो कोई दिक्कत नहीं कोई इन्साफ की मांग नहीं करेगा.
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अगर मरने वाला कोई स्वर्ण होगा और मारने वाला दलित पिछड़ा तब ये लोग इन्साफ की मांग करेंगे. इस तरह के कई उदाहरण इस देश ने पिछले कुछ सालों में देखा हैं.
अभी हाल की घटना महाराष्ट्र के पालघर की देख लीजिये वहां तीन साधुओं की मोब लिंचिंग कर दी गयी. सरकार महाराष्ट्र में विपक्ष की हैं मामला जाहिर सी बात है गर्म होना था. मीडिया से लेकर केंद्र सरकार समर्थक भी काफी गुस्से में थे आरोप लगाया विपक्ष की सरकार में हिन्दू संत सुरक्षित नहीं.
महाराष्ट्र की सरकार पर काफी दवाव था. उसने तुरंत जाँच की. 110 लोगों को गिरफ्तार किया. इसमें 9 लोग नाबालिग पाए गए. जिसको सुधार गृह में भेजा गया. सरकार ने उन 101 आरोपी के नाम पब्लिक के बीच जारी किया. इसपर वहां के गृह मंत्री ने कहा इस लिस्ट में एक भी मुस्लिम नाम नहीं हैं सभी आरोपी उसी धर्म के है जिस धर्म के साधु.
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लिस्ट आते ही मामला शांत सभी आरोप लगाने वाले मीडिया और संत के समर्थक चुप हो गए वजह थी आरोपी सभी इसी धर्म के. अब सवाल ये उठता हैं क्या ये लोग धर्म और सरकार देख कर इन्साफ की मांग करते हैं. अगर ऐसे बात हैं तो लोग स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद को क्यों भूल जाते हैं जिनकी मौत गंगा बचाने के उपवास के वजह से हुई.
ये बात इसलिए अब जिक्र किया जा रहा है क्योकि कुछ लोगों ने इसको लेकर सोशल मीडिया पर पालघर हत्त्या कांड पर बोलने वाले को याद दिलाने की कोशिस किया हैं.
दरअसल आपको बता दे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद वही संत हैं जिनकी मौत 11 अक्टूबर 2018 को हुआ. स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जब अनशन पर बैठे थे तब उन्होंने कहा था की ” हमने प्रधानमंत्री कार्यालय और जल संशाधन मंत्रालय को कई सारे पत्र लिखा था, लेकिन किसी ने भी जवाब देने की जहमत नहीं उठाई. मैं पिछले 109 दिनों से अनशन पर हूं और अब मैंने निर्णय लिया है कि इस तपस्या को और आगे ले जाऊंगा और अपने जीवन को गंगा नदी के लिए बलिदान कर दूंगा. मेरी मौत के साथ मेरे अनशन का अंत होगा.’
अग्रवाल गंगा को अविरल बनाने के लिए लगातार कोशिश करते रहे. उनकी मांग थी कि गंगा और इसकी सह-नदियों के आस-पास बन रहे हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के निर्माण को बंद किया जाए और गंगा संरक्षण प्रबंधन अधिनियम को लागू किया जाए.
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उन्होंने कहा था, ‘अगर इस मसौदे को पारित किया जाता है तो गंगाजी की ज्यादातर समस्याएं लंबे समय के लिए खत्म हो जाएंगी. मौजूदा सरकार अपने बहुमत का इस्तेमाल कर इसे पास करा सकती है. मै अपना अनशन उस दिन तोडूंगा जिस दिन ये विधेयक पारित हो जाएगा. ये मेरी आखिरी जिम्मेदारी है. अगर अगले सत्र तक अगर सरकार इस विधेयक को पारित करा देती है तो बहुत अच्छा होगा. अगर ऐसा नहीं होता है तो कई लोग मर जाएंगे. अब समय आ गया है आने वाली पीढ़ी इस पवित्र नदी की जिम्मेदारी ले.’
अब लोग सवाल यही उठा रहे हैं उस समय लोग उनका साथ दिया क्या वे हिन्दू संत नहीं थे?