देश जब आज़ाद हुआ तो चारो तरफ खुशी का माहौल था. लोग जश्न मना रहे थे की अब हम अंग्रेज़ो से आज़ाद हो गए. अब अपने हिसाब से जिंदगी जी सकते हैं. अपने हिसाब से पहन सकते हैं. अपनी मर्जी से खा सकते हैं. यानी सबकुछ अपने अनुसार कर सकते हैं.
लेकिन उस वक्त किसी ने ये नहीं सोचा होगा की एक दिन ऐसा भी शासन आ जायेगा जहाँ किसी एक धर्म को अपने ही देश में टारगेट किया जायेगा। उनके हर छोटी बड़ी गतिविधियों पर सवाल उठाया जायेगा. यहाँ तक की उनको मिले संवैधानिक अधिकारों के वाबजूद उनके बातों पर भी पाबन्दी लगाने की पूरी कोशिस की जाएगी.
आज़ादी के बाद देश में संविधान बना तो उस संविधान में अपने सभी नागरिकों के लिए बोलने की आज़ादी, खाने की आज़ादी, कपड़े पहनने की आज़ादी से लेकर उनके सभी अधिकार दिए गए जिसपर दूसरे किसी का हस्तक्षेप ना हो.
अब इसी पर सामाजिक कार्यकर्ता “Syed Abdul Kadir” ने अपने ट्वीट में जिक्र करते हुए लिखा ” जब संविधान हर नागरिक को अपने धर्म की बात रखने की अनुमति देता है तो मुस्लिम द्वारा अपने धर्म की बात रखने पर कुछ अराजक लोगों के गुर्दे में दर्द क्यों उठने लगता है। तुम पुराण की बात करो तो धार्मिक हम क़ुरान की बात करें तो कट्टर..भाई वाह।”
आपको बता दे देश का सविधान ने समानता का अधिकार के तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून। अनुच्छेद 15 के तहत धर्म, जाति, नस्ल के आधार पर भेदभाव नहीं। अनुच्छेद 16 के तहत नियुक्ति और नियोजन में सभी नागरिकों को समान अवसर दिया हैं
वही स्वतंत्रता का अधिकार के तहत अनुच्छेद 19 के तहत नागरिकों को छह तरह की स्वतंत्रता है। बोलने की स्वतंत्रता, शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने, सभा करने का अधिकार, संघ या संगठन बनाने की स्वतंत्रता, देश के किसी क्षेत्र में आने-जाने की आजादी को दिया हैं
फिर आज वही सवाल उठता हैं की मुस्लिम लोग जब अपने धर्म को लेकर कुछ बोलते हैं तो कुछ लोगों को दुःख क्यों होता हैं? आप भी बोलो ना आपको कौन रोका हैं?