कोरोना संकट में 61 लाख पेंशन धारियों का पैसा रोक सकते हैं तो 20,000 करोड़ की लागत से बन रही लोकसभा महल क्यों नहीं रुक सकता?

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केंद्र के 50 लाख कर्मचारियों और 61 लाख पेंशनभोगियों का भत्ता रोक दिया है, लेकिन 20,000 करोड़ का ‘सपनों का महल’ बनाने का प्रोजेक्ट नहीं रोका गया है. ‘सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट’ के तहत सरकार नया संसद भवन, एक नया आवासीय परिसर बनाकर उसका पुनर्विकास करने जा रही है, जिसमें प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति के अलावा कई नए कार्यालय होंगे.

क्या भारत में सच में नये संसद भवन, राष्ट्रपति कार्यालय और प्रधानमंत्री के कार्यालय भवनों की जरूरत है? जो भवन और कार्यालय हैं, उनमें क्या गड़बड़ी है? क्या बीजेपी सरकार को हमारा 93 साल पुराना खूबसूरत संसद भवन पसंद नहीं है? सरकार कह रही है कि पैसे की कमी है, कोरोना महामारी आई तो नया रहस्यमयी कोष बनाकर पब्लिक से पैसे लिए गए, लेकिन इस प्रोजेक्ट के लिए भूमि उपयोग में बदलाव को 20 मार्च, 2020 को अधिसूचित किया गया.

लगभग 86 एकड़ भूमि के उपयोग में बदलाव अधिसूचित हुआ है. सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई थी कि इस प्रोजेक्ट पर रोक लगाई जाए, लेकिन कोर्ट ने कहा कि कोई जल्दी नहीं है और रोक लगाने से इनकार कर दिया. कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी इस प्रोजेक्ट को रोकने की मांग कर चुकी हैं. लेकिन सरकार ने अब तक पीछे नहीं हटी है. लॉकडाउन के बाद के आंकड़े हैं कि 12 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए. लाखों लोग पैदल अपने घरों से भाग रहे हैं.

करोड़ों लोगों को खाने का संकट है. 40 करोड़ से ज्यादा लोगों के गरीबी रेखा से नीचे जाने का अनुमान लगाया जा रहा है. ऐसे समय में यह मायामहल किसके लिए बनवाया जा रहा है? ऐसे समय में जब जगह जगह से खबरेंं आ रही हैं कि लोग भूख से बेहाल हैं, उस समय यह प्रोजेक्ट न सिर्फ फिजूलखर्ची है, बल्कि एक तरह की राजकीय क्रूरता है.

(ये लेख कृष्णकांत जी के फेसबुक बॉल से लिया गया हैं)