शाहीन बाग के आंदोलन में कोई हिंसा नहीं हुई. कोशिश की गई, फिर भी नहीं हुई. वहां कोई गैरकानूनी काम नहीं हुआ. महिलाओं की अगुआई में धरना प्रदर्शन चलता रहा जो लॉकडाउन के साथ बंद हो गया.
जो दंगा हुआ था, वह दरअसल कराया गया था. पुलिस को धमकी देते हुए वीडियो वायरल हुए थे. बाद में उस धमकी पर अमल किया गया. दंगे की अगुवाई सीएए के समर्थकों ने की. हाईकोर्ट ने कहा कि भड़काने वालों पर मुकदमा दर्ज करो तो जज का ट्रांसफर कर दिया गया.
अब सीएए के विरोध में प्रदर्शन करने वाले लोगों को एक एक करके जेल में डाला जा रहा है. संविधान में जो अधिकार दिए गए हैं, वे धर्म से परे हैं. आज अगर एक समुदाय के लोगों के प्रदर्शन के अधिकार को अपराध मान लिया जाएगा तो अगला नंबर आपका है, भले ही आप किसी धर्म के मानने वाले हों.
किसी को जेल में डाल देने से सीएए अच्छा कानून नहीं बन जाएगा. संविधान के जानकारों, रिटायर्ड जजों, नामचीन वकीलों ने इसका विरोध किया है. यह अंतिम तथ्य है कि धर्म के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान भारतीय संविधान के खिलाफ है. यह भारत की संवैधानिक संरचना को बदल देगा.
संविधान के मूल चरित्र को बदल देने का खामियाजा एक दिन हम सबको भोगना पड़ेगा. यह उस संविधान की रक्षा का सवाल है जिसे हासिल करने के लिए लाखों लोगों ने जान दी थी. अगर आपको लगता है कि भारतीय संविधान का तालिबानीकरण कर दिया जाना चाहिए तो मुझे आपसे कुछ नहीं कहना है. फिर तो आप जान बूझकर सल्फास खाने पर आमादा हैं.