Facebook
Twitter
WhatsApp
Telegram
Email
प्रतीकात्मक तस्वीर

लॉक डाउन में किसी गरीब ने सही कहा था, ” साहेब हम कोरोना से मरेंगे या बचेंगे हमे नहीं पता लेकिन इस भूख से जरूर मर जायेंगे ” शायद कहने वाले उस मजदूर को जमीनी हकीहत सरकार और समाज की अच्छे से पता था.

मामला बिहार के युवक का हैं. बेचारा इस लॉक डाउन में देश के साथ खड़े होने के लिए उसने भी सरकार के दिशा निर्देश का पालन किया लेकिन अब उसको वही दिशा निर्देश जान ले ली. उस युवक को पता नहीं था की कोरोना से हम मरेंगे की नहीं लेकिन भूख से जरूर मर जायेंगे.

दरअसल ” अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताविक छाबू मंडल 15 साल पहले बिहार के मधेपुरा जिले से गुड़गांव आए थे. 10 साल पहले उनकी शादी हुई थी. फिर वे परिवार को भी यहां ले आए. पिछले कुछ महीनों से वे सरस्वती कुंज में रहते थे. यहां पर दो झुग्गियों का किराया 3000 रुपये था.

छाबू के ससुर उमेश ने बताया कि पिछले साल अक्टूबर-नवंबर से ही काम मिलना बंद हो गया था. पूनम का दावा है कि मकान मालिक ने किराए के लिए एक-दो बार फोन भी किया. इससे समस्या और बढ़ गई. जब भी कहीं खाने की खबर मिलती थी तो दौड़ते थे.

पूनम ने आगे कहा

16 अप्रैल को सुबह मेरे पति ने फोन बेचने का फैसला किया. इसे उन्होंने 10,000 रुपये में खरीदा था. इससे बेचने से मिले पैसों से दाल-चावल और एक पंखा खरीदा. हम सब परेशान थे. लेकिन वह ज्यादा परेशान थे.

उन पर हम सबका पेट भरने की जिम्मेदारी थी. पर हमने कभी नहीं सोचा कि वे ऐसा कर लेंगे. अब हमारे लिए कमाने वाला भी कोई नहीं है. लॉकडाउन पूरा होने पर मैं घरों में काम करने के लिए जाऊंगी. लेकिन इसमें भी अभी 15 दिन बाकी है.

वही गुड़गांव पुलिस ने बताया कि छाबू मंडल मानसिक रूप से परेशान थे. सेक्टर 53 थाने के एसएचओ दीपक कुमार ने एक्सप्रेस से कहा कि सुसाइड के बारे में जानकारी मिली है. वह बाहर से काम करने आया था. और मानसिक रूप से परेशान था. उसकी बॉडी परिवार को दे दी गई है. उन्होंने मामले में कार्रवाई की मांग नहीं की. ऐसे में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है.

गौरतलब है की 35 साल के छाबू मंडल ने 16 अप्रैल की सुबह अपना मोबाइल फोन बेच दिया. इससे उन्हें 2500 रुपये मिले. इन पैसों से उन्होंने एक छोटा सा टेबल पंखा खरीदा. साथ ही परिवार का राशन भी लिया. छाबू बिहार के रहने वाले थे. लेकिन काम की तलाश उन्हें गुरुग्राम ले आई. यहां पर वे पेंटर का काम करते. और परिवार पालते. उनके परिवार में पत्नी, चार बच्चे और सास-ससुर थे. पूरा परिवार दो झुग्गियों में रहता था.