वह 18 अप्रैल 1982 का दिन था। राजकुमार फ़हद हिन्दुस्तान की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लेने एयरपोर्ट पर मौजूद थे, जो चार दिन की यात्रा में अरब आने वाली थी। जैसे ही इंदिरा जी हरे रंग की बिंदीदार सूती साड़ी पहने जहाज़ से नीचे उतरी फ़हद ने आगे बढ़कर कहा ‘समूचा सऊदी अरब आपसे मिलना चाहता है’।
स्वागत का आलम यह था कि राजा ख़ालिद ने ख़ुद की डिज़ाइन कराई हुई स्वर्णजड़ित कार इंदिरा जी को लाने एयरपोर्ट भेजी थी और अपने महल में मौजूद गेस्ट हाउस में उनके रुकने का इंतज़ाम किया था। उस वक़्त भी दुनिया भर में कहा जाता था कि भारत में हिन्दू मुसलमान में भेद होता है इंदिरा ने यह भ्रम तोड़ने के लिए आयी अपने साथ गए डेलीगेशन में दो मुस्लिम मंत्रियों और चार सेक्रेटरिज को रखा था।
ख़ैर किंग ख़ालिद, फ़हद और इंदिरा जी के बीच तय समय सीमा से ज़्यादा बैठक चली, सभी हैरत में थे। बताते हैं कि बातचीत के बाद जब इंदिरा जी एयरपोर्ट जाने के लिए निकली राजा ने कहा यूँ लगा घर का कोई आया है। जैसे ही इंदिरा जी वापस भारत पहुँची राजा ने जहाज़ से अरबी घोड़ा भिजवा दिया। यह मुलाक़ात दुनिया भर की मीडिया में चर्चा का विषय थी।
एक दिन वो था एक दिन यह है। अरब की जनता हमको गाली दे रही है। हमें वहशी दरिंदा बता रही है। वो हमें बता रही है और दिखा भी रही है कि बतौर इंसान हम हिन्दुस्तानी कितने बेशर्म है। हम नफ़रती कौम साबित हुए हैं। हम हिन्दुस्तानी जगहँसाई के लिए तो नही थे। सर, भाषण बाद में दे लीजिएगा एक बार ख़ुद अपने एमपी, एमएलए और अपने भक्तों को इंदिरा गांधी और नेहरु को पढ़ने को कह दें।
(पत्रकार आवेश तिवारी के फेसबुक बॉल से)