अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे सर्वे भी बताते रहते हैं कि भारत तेजी से आर्थिक विकास कर रहा है और देश में अरबपतियों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। इन सबके आधार पर तो तसवीर यही बनती है कि भारत के लोग लगातार खुशहाली की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन हकीकत यह नहीं है।
हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र की ‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट-2020’ में भारत को 144 वां स्थान मिला है। पिछले वर्ष भारत 140वें पायदान पर था और उससे पहले यानी 2018 में 133 वें और 2017 में 122 वें पायदान पर था। सर्वे में कुल 156 देश शामिल हैं।
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इस साल जो ‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट’ जारी हुई है, उसके मुताबिक भारत उन चंद देशों में से है, जो नीचे की तरफ खिसके हैं। हालांकि भारत की यह स्थिति खुद में चौकाने वाली नहीं है। लेकिन यह बात ज़रूर ग़ौरतलब है कि कई बड़े देशों की तरह हमारे देश के नीति-नियामक भी आज तक इस हक़ीक़त को गले नहीं उतार पाए हैं कि देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) या विकास दर बढ़ा लेने भर से हम एक खुशहाल समाज नहीं बन जाएंगे।
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हमारे अन्य पड़ोसी देश श्रीलंका, म्यांमार और भूटान भी हमसे ज्यादा खुशहाल हैं। सार्क देशों में सिर्फ अफ़ग़ानिस्तान ही खुशमिजाजी के मामले में भारत से पीछे है। अलबत्ता लगातार युद्ध से आक्रांत फिलिस्तीन भी इस सूची में भारत से बेहतर स्थिति में है। दिलचस्प बात है कि आठ साल पहले यानी 2013 की रिपोर्ट में भारत 111वें नंबर पर था।