लगता है गलती से ही सही, तीर निशाने पर जा लगा है। जब से राहुल गांधी ने गरीबों को 6000 रुपए महीने देने की चुनावी घोषणा की है तब से दोनों तरफ से चुनावी कैंप में खलबली मची है। सपा-बसपा को समझ नहीं आ रहा कि उसने घोषणा की क्या है? उधर भाजपा को समझ नहीं आ रहा कि इस घोषणा का जवाब कैसे दिया जाए? अगर भाजपा की घबराहट का कोई प्रमाण चाहिए तो प्रधानमंत्री द्वारा आनन-फानन में राष्ट्र के नाम संदेश को देख लीजिए। सच यह है कि लो ऑर्बिट सैटेलाइट को मारने की क्षमता विकसित करने पर सार्वजनिक क्षेत्र का सुरक्षा संगठन डी.आर.डी.ओ. पिछले एक दशक से काम कर रहा था। पिछली मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान 7 मई 2012 को यह काम पूरा हो गया था और डी.आर.डी.ओ. ने आधिकारिक घोषणा कर दी थी कि अब भारत ने लो ऑर्बिट सैटेलाइट को मार गिराने की तकनीक हासिल कर ली है।
श्रेय लूटने की कोशिश की।
जाहिर है इस घोषणा से पहले परीक्षण हुए होंगे लेकिन चुपचाप तरीके से, जाहिर है 2012 से अब तक भी परीक्षण का सिलसिला जारी रहा होगा। अब जो हुआ है वह सिर्फ इतना कि इस परीक्षण को जगजाहिर कर दिया गया और प्रधानमंत्री ने चुनाव के बीचों-बीच राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित कर श्रेय लूटने की कोशिश की। प्रधानमंत्री पद की मर्यादा और चुनाव की आचार संहिता गई भाड़ में?
जाहिर है, मोदी जी को दिख रहा होगा कि पुलवामा और बालाकोट के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा, एयर स्ट्राइक’ का उफान कुछ उतर गया है। कांग्रेस की न्यूनतम आय गारंटी योजना की घोषणा के बाद चुनावी चर्चा फिर बुनियादी मुद्दों की ओर मुड़ रही है। उधर रोजगार का सवाल भी दबाए नहीं दब रहा है। किसानों को इस बार भी सरसों और चने की फसल का सही दाम नहीं मिल रहा है। गन्ने के किसान का बकाया अभी बाकी है। ऐसे में जनता का ध्यान मोडऩे की एक और कोशिश की जरूरत महसूस हुई होगी। हो सकता है चुनाव से पहले ऐसा ही एक और धमाका भी हो जाए।
5 करोड़ परिवारों को सीधे हर महीने 6000 रुपया
मजे की बात यह है कि न्यूनतम आय की गारंटी का तीर चलाने वाली कांग्रेस को पहले दिन जब घोषणा किया उसने स्पष्ट नहीं किया पहले दिन राहुल गांधी ने कहा कि जिस भी परिवार की 12000 रुपए प्रति माह से कम आय है, उसे बकाया राशि की भरपाई की जाएगी। अगले दिन कांग्रेस ने स्पष्ट किया कि अलग-अलग परिवारों को अलग-अलग राशि की भरपाई नहीं होगी, बस सबसे गरीब 5 करोड़ परिवारों को सीधे हर महीने 6000 रुपया दिया जाएगा।
पहले कांग्रेस के प्रवक्ता ने इशारा किया कि इस योजना को लागू करने के लिए गरीबी उन्मूलन की कुछ अन्य योजनाओं में कटौती की जा सकती है। अगले दिन कांग्रेस ने स्पष्ट किया कि गरीबों के कल्याण के लिए चल रही योजनाओं जैसे सस्ता राशन, मनरेगा, आंगनबाड़ी और प्रधानमंत्री आवास योजना में कोई कटौती नहीं की जाएगी। कांग्रेस अभी तक यह भी नहीं बता पाई है कि इस योजना के लिए पैसा कहां से आएगा। जाहिर है इतने बड़े खर्चे के लिए कहीं न कहीं टैक्स बढ़ाना पड़ेगा लेकिन कांग्रेस इस सवाल से मुंह चुरा रही है।
भाजपा की स्थिति सांप-छछूंदर
उधर भाजपा की स्थिति सांप-छछूंदर जैसी हो गई है। न निगलते बन रहा, न उगलते बन रहा। एक तरफ भाजपा के प्रवक्ता कहते हैं कि यह योजना तो हमारे समय में अरविंद सुब्रमण्यन ने सुझाई थी, कांग्रेस चोरी कर रही है। अगर यह सच है तो सवाल उठता है कि भाजपा ने इसे लागू क्यों नहीं किया? फिर वह कहते हैं कि यह योजना तो गरीबों को भिक्षा देने वाली है, उन्हें कामचोर बनाएगी। अगर ऐसा है तो भाजपा ने इसी बजट में हर किसान परिवार को सालाना 6000 रुपए देने की योजना की घोषणा क्यों की थी? क्या वह भिक्षा नहीं है? क्या वह कामचोर नहीं बनाएगी?
फिर वह कहते हैं कि ऐसी योजना में गरीबों की पहचान कैसे होगी? यह आपत्ति दर्ज करते समय भाजपा के प्रवक्ता भूल जाते हैं कि उनकी सरकार ने ही आयुष्मान भारत योजना घोषित की है जिसमें 10 करोड़ गरीब परिवारों को चिन्हित करने का प्रावधान है। अगर उस योजना में गरीबों को चिन्हित किया जा सकता है तो इस योजना में क्यों नहीं? भाजपा की परेशानी का आलम यह है कि उसने सभी आचार संहिता और मर्यादा को ताक पर रखते हुए सरकारी अर्थशास्त्रियों को कांग्रेस के खिलाफ उतारना शुरू किया है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार टी.वी. पर आकर कांग्रेस की घोषणा का मजाक बना रहे हैं। सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार संजीव सानयाल कांग्रेस के कार्यक्रम में छेद गिना रहे हैं।
फसर की मर्यादा और चुनाव की आचार संहिता के हिसाब
किसी भी सरकारी अफसर की मर्यादा और चुनाव की आचार संहिता के हिसाब से उन्हें किसी राजनीतिक दस्तावेज या घोषणा पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन क्योंकि नोटबंदी के बाद से कोई भी समझदार अर्थशास्त्री भाजपा के साथ खड़ा होने के लिए तैयार नहीं है, इसलिए अब उसे सरकारी अफसरों का सहारा लेना पड़ रहा है। ये अर्थशास्त्री वित्तीय घाटे की दुहाई दे रहे हैं। सच यह है कि इस साल के बजट में भाजपा ने भी ठीक वही काम किया है जिसका आरोप वह कांग्रेस पर लगा रही है। यूं भी देश की आम जनता को वित्तीय घाटे जैसी बारीकियों से कोई लेना-देना नहीं है।
अटल बिहारी की बड़ी हार
सच यह है कि राहुल गांधी की इस घोषणा से गरीबी पर सॢजकल स्ट्राइक हो न हो, इस चुनाव की चर्चा ठीक दिशा में मुड़ गई है। दिल्ली दरबार के सत्ता के खेल और टी.वी. चैनलों की टी.आर.पी. की दौड़ के बीच अचानक एक फटेहाल गरीब खड़ा हो गया है। जो चुनाव दो हफ्ते पहले तक एकतरफा एयर स्ट्राइक’ करवाने वाला और उसका वाहवाही लूटने वाले के तरफ नजर आ रहा था वह अचानक फिर से राहुल गांधी ने रोजार, शिक्षा, स्वास्थ्य, किसान और गरीबी की तरफ मोड़ दिया है जिसका जबाब देना मुश्किल साबित हो रहा है वो भी ऐसे वक्त पर जब वोटिंग के कुछ दिन बाकी रह गऐ है। आप ऐसा भी कह सकते है 2004 में जब ऐसी ही लहर अटल बिहारी के तऱफ चल रही थी, साईनिंग इंडिया जैसे नारे बूलंद हो रहें थे, टीवी चैनलों के सर्वें में भाजपा दोबारा सत्ता में आ रही थी लेकिन उस वक्त भी कांग्रेस चुपके से दबी आवाज में ऐसे ही काम करके चुनाव की हवा बदल दी और अटल बिहारी की बड़ी हार हुई आज भी वही डर भाजपा को इस घोषणा के बाद सता रही है।