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दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अपनी ईमानदारी की सजा भुगत रहा है एक मुस्लमान डॉ. कफील खान?

कहने को भारत एक लोकतांत्रिक देश है लेकिन पिछले कुछ सालों के भीतर हुए कांड को देखे तो आपको विस्वास हो जायेगा की यहाँ अब किसी आम नागरिक को न्याय मिलना बहुत मुश्किल है. एक नाम ऐसा ही है डॉ. कफील खान. वस्जा किस चीज़ के लिए उसे मिल रही है खुद उसे भी नहीं पता ना देश के कानून को पता है क्यों उसको सजा दी जा रही है?

आपको याद होगा गोरखपुर का वो हॉस्पिटल जहां कई मासूम बच्चों की मौत सरकार के लापरवाही के वजह से हुआ. कई माओं ने अपने जिगर के टुकड़ों को खोया, ना जाने कितने माँ बाप के सपने उस हॉस्पिटल मे फैली अव्यवस्था और सरकार की नाकामियों के कारण बर्बाद हुए और उसमे एक डॉ कफील जिसने “डॉ के भगवान के रूप” कि कहावत को साबित किया उसी डॉ को उसके नेक कामों की जो सजा भुगतनी पड़ी!

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2017 में गोरखपुर के बीआरडी हॉस्पिटल मे लगभग 70 बच्चों की ऑक्सीजन ना मिल पाने के कारण मौत हुई थी और उसी हॉस्पिटल का एक मामूली डॉ अलग-अलग हॉस्पिटल से अपने मिलने वाले तमाम मित्रों के साथ पूरी रात मासूम बच्चों की जानों को बचाने के लिए मारा-मारा फिर रहा था और बच्चों की जान बचाने की हर संभव कोशिश कर रहा था

योगी सरकार ने सबसे पहले उसी डॉक्टर को जिसे हम डॉ कफील के नाम से जानते हैं उनको सस्पैंड किया और कुछ दिन बाद गिरफ्तार किया पूरे भारत मे डॉ कफी़ल की मेहनत और कोशिशों की खूब सराहना, प्रशंसा हुई लेकिन यह योगी सरकार को कहाँ सहन होने वाला था !

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डॉ कफील को उसका सस्पैंड ऑर्डर और गिरफ्तारी का फरमान सिर्फ इसलिए था क्यूँ की उस डॉ का नाम मुस्लिम था और यही उसका सबसे बड़ा गुनाह साबित हुआ और फिर योगी सरकार ने एक जांच एजेंसी बैठा दी! पूरे आठ महीने डॉ कफ़ील जेल में रहे !

कफ़ील अलीगढ मे 12 दिसंबर 2019 को छात्रों द्वारा बुलाए जाने पर और छात्रों को समर्थन देने जो कि हर नागरिक का संविधानिक अधिकार हे, धरना स्थल पहुंचे जहां उनके साथ स्वराज पार्टी के योगेन्द्र यादव भी साथ थे डॉ कफील इन काले कानूनों के खिलाफ छात्रों को संबोधित करते हें और इनके साथ योगेन्द्र यादव भी संबोधित करते हें 13 दिसम्बर 2019 को डॉ कफ़ील के खिलाफ़ भड़काऊ भाषण देने के लिए अलीगढ़ के थाना सिविल लाइन द्वारा डॉ कफील के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाता है!

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और इसी मुक़दमे के तहत उत्तरप्रदेश की पुलिस UPSTF द्वारा 29 जनवरी को मुंबई एयरपोर्ट से डॉ साहब को अरेस्ट कर लिया जाता है डॉ साहब को उनकी टीम की कोर्ट की मदद मिलती हे और आपको कोर्ट द्वारा 10 फरवरी 2020 को 60 ,60 हजार के दो बेल बॉन्ड शर्त के साथ भरवा कर ज़मानत दे दी जाती हे लेकिन उन्हें जैल प्रशासन द्वारा रिहा नहीं किया जाता हे जब उनकी टीम को 72 घंटे बाद इस बात की जानकारी मिलती हे तो पता चलता हे कि उसी उत्तरप्रदेश की पुलिस द्वारा उन पर NSA के तहत मुकदमा दर्ज किया गया हे जिससे उनकी बेल पर रोक लगायी गयी है

यह कानून डॉ कफ़ील पर इसलिए लगाया गया कि ताकि पुलिस को यह ना बताना पढे की क्यूँ गिरफ्तार किया है और ज़मानत भी ना मिल सके।